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संग्रह (बाइबल का संग्रह)

संग्रह (बाइबल का संग्रह)

“बाइबल का संग्रह” इन शब्दों का मतलब है, ऐसी किताबों का संग्रह या सूची जिन्हें परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखे गए शास्त्र का हिस्सा माना जाता है।

“संग्रह” के इब्रानी शब्द कानेह का मतलब है, नरकट। नरकट को माप-छड़ के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। (यहे 41:8) इसलिए यह कहना सही होगा कि बाइबल के संग्रह या परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी किताबों के संग्रह से पढ़नेवाला अपना विश्‍वास, शिक्षाएँ और चालचलन “माप” सकता है।

ईसा पूर्व पाँचवीं सदी के आखिर तक यह तय किया जा चुका था कि कौन-सी किताबें इब्रानी शास्त्र के संग्रह का हिस्सा होतीं। यहूदियों की मान्यता है कि संग्रह करने का यह काम एज्रा ने शुरू किया था जो एक कुशल शास्त्री था और जिसने परमेश्‍वर की प्रेरणा से बाइबल की एक किताब लिखी थी। (एज 7:6, फु.) फिर नहेमायाह ने यह काम पूरा किया। मसीही यूनानी शास्त्र की किताबों की लिखाई उस दौरान पूरी हुई जब मसीह के चेलों को पवित्र शक्‍ति के वरदान मिले थे। (यूह 14:26; प्रक 1:1) कुछ मसीहियों को “प्रेरित वचनों को परखने का” वरदान मिला था। (1कुर 12:10) इसलिए वे परख सकते थे कि मंडली को मिलनेवाली कौन-सी चिट्ठियाँ परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी गयी हैं। उन्हें इस बारे में किसी चर्च परिषद्‌ से पूछने की ज़रूरत नहीं थी। जब आखिरी प्रेषित यूहन्‍ना की मौत हुई तो उसके बाद से परमेश्‍वर ने इंसानों के ज़रिए और किताबें नहीं लिखवायीं। इस तरह प्रकाशितवाक्य की किताब, यूहन्‍ना की खुशखबरी की किताब और उसकी तीन चिट्ठियों के साथ ही बाइबल का संग्रह पूरा हो गया। बाद के दूसरे लेखकों ने जो बात कही वह बहुत अनमोल है क्योंकि इससे पुख्ता हुआ कि बाइबल की किताबों का संग्रह सही है और इन्हें परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में लिखा गया था।