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बाइबल​—अलग-अलग तरह की क्यों हैं?

बाइबल​—अलग-अलग तरह की क्यों हैं?

आज कई तरह की बाइबल उपलब्ध हैं। जब कुछ लोग एक नयी बाइबल देखते हैं, तो उन्हें लगता है कि शायद अब बाइबल को समझना आसान हो जाएगा, जबकि कुछ लोगों को लगता है कि और मुश्‍किल हो जाएगा। यह कैसे पता लगाया जा सकता है कि एक नयी बाइबल समझने में आसान होगी या मुश्‍किल? इसके लिए आपको जानना होगा कि उसका अनुवाद किसने किया है और क्यों।

लेकिन आइए पहले देखें कि बाइबल सबसे पहले किसने लिखी और कब?

सबसे पहले लिखी गयी बाइबल

बाइबल दो भागों में बाँटी गयी है। पहले भाग में 39 किताबें हैं, जो “परमेश्‍वर के पवित्र वचन” का हिस्सा हैं। (रोमियों 3:2) परमेश्‍वर ने अपने कुछ वफादार सेवकों को ये किताबें लिखने की प्रेरणा दी थी। इन्हें ईसा पूर्व 1513 से करीब ईसा पूर्व 443 के बीच लिखा गया यानी लगभग 1,100 साल के दौरान। ये किताबें ज़्यादातर इब्रानी भाषा में लिखी गयीं, इसलिए इन्हें इब्रानी शास्त्र या ‘पुराना नियम’ कहा जाता है।

बाइबल के दूसरे भाग में 27 किताबें हैं और वे भी ‘परमेश्‍वर के वचन’ का हिस्सा है। (1 थिस्सलुनीकियों 2:13) ये किताबें परमेश्‍वर ने अपनी प्रेरणा से कुछ वफादार मसीहियों के ज़रिए लिखवायीं। इब्रानी शास्त्र के मुकाबले ये किताबें काफी कम वक्‍त में लिखी गयीं, करीब ईसवी सन्‌ 41 से ईसवी सन्‌ 98 के बीच यानी लगभग 60 साल के दौरान। इन लेखकों ने ज़्यादातर किताबें यूनानी भाषा में लिखीं, इसलिए इस भाग को मसीही यूनानी शास्त्र कहा जाता है। यह भाग ‘नया नियम’ भी कहलाता है।

पूरी बाइबल में परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी कुल 66 किताबें हैं। इन किताबों में परमेश्‍वर की तरफ से इंसानों के लिए संदेश दिया है। लेकिन सवाल उठता है कि बाइबल के इतने सारे अनुवाद क्यों किए गए? इसकी तीन खास वजह हैं।

  • लोग इसे अपनी मातृ-भाषा में पढ़ सकें।

  • नकल-नवीसों से हुई गलतियाँ सुधारी जा सकें और वही बातें रखी जाएँ, जो सबसे पहले लिखी गयी बाइबल में थीं।

  • इसे बदलते ज़माने के हिसाब से बोली जानेवाली भाषा में पढ़ा जा सके।

आइए देखें कि शुरू-शुरू में दो भाषाओं में अनुवाद की गयी बाइबल में इन बातों का कैसे ध्यान रखा गया।

यूनानी सेप्टुआजेंट बाइबल

यीशु के दिनों से करीब 300 साल पहले यहूदी विद्वान इब्रानी शास्त्र का यूनानी भाषा में अनुवाद करने लगे। यह बाइबल यूनानी सेप्टुआजेंट के नाम से जानी गयी। इसकी ज़रूरत क्यों पड़ी? उस ज़माने तक बहुत-से यहूदी इब्रानी के बजाय यूनानी बोलने लगे थे। ये यहूदी अपना “पवित्र शास्त्र” यानी इब्रानी शास्त्र पढ़कर समझ सकें, इसलिए यह अनुवाद किया गया।—2 तीमुथियुस 3:15.

यहूदियों के अलावा यूनानी जाननेवाले और भी कई लोग सेप्टुआजेंट पढ़कर बाइबल की शिक्षाएँ समझ पाए। प्रोफेसर डब्ल्यू. एफ. हाउवर्ड ने कहा, ‘करीब ईसवी सन्‌ 50 से मसीह के शिष्य सेप्टुआजेंट का इस्तेमाल करने लगे। मिशनरी, यहूदियों के सभा-घरों में जाकर इसी “शास्त्र से हवाले देकर साबित करते थे कि यीशु ही मसीहा है।”’ (प्रेषितों 17:3, 4; 20:20) मगर, जैसे बाइबल के विद्वान एफ.एफ. ब्रूस बताते हैं, इस वजह से बाद में बहुत-से यहूदी “सेप्टुआजेंट पढ़ने से कतराने लगे।”

जैसे-जैसे ‘मसीही यूनानी शास्त्र’ की किताबें लिखी जाने लगीं, यीशु के शिष्य इन्हें इब्रानी शास्त्र के सेप्टुआजेंट बाइबल में जोड़ते गए। इस तरह पूरी बाइबल तैयार हो गयी, जिसे हम आज पढ़ते हैं।

लातीनी वल्गेट बाइबल

पूरी बाइबल लिखे जाने के 300 साल बाद बाइबल के विद्वान जेरोम ने लातीनी भाषा में बाइबल का एक नया संस्करण तैयार किया। यह बाइबल बाद में लातीनी वल्गेट के नाम से जानी गयी। उस ज़माने में लातीनी भाषा में कई बाइबलें थीं, तो एक नयी बाइबल की ज़रूरत क्यों पड़ी? दी इंटरनेशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया बताती है कि पुरानी बाइबलों में छोटी-मोटी गलतियाँ थीं, तो कुछ बातों का गलत अनुवाद हुआ था और कुछ बातें बेवजह जोड़ दी गयीं या निकाल दी गयी थीं। जेरोम ये गलतियाँ सुधारना चाहता था।

जेरोम ने बहुत-सी गलतियाँ सुधारीं। लेकिन कई सालों बाद चर्च के अधिकारियों ने एक बहुत गलत फैसला लिया। उन्होंने ऐलान किया कि लातीनी वल्गेट ही सही बाइबल है और हर किसी को सिर्फ यही बाइबल पढ़नी चाहिए। सदियों तक यही चलता रहा। लेकिन तब तक ऐसा हुआ कि ज़्यादातर लोग लातीनी भाषा समझते ही नहीं थे। इसलिए वल्गेट बाइबल आम लोगों की समझ में आने के बजाय सिर्फ देखने-भर की किताब रह गयी।

नयी-नयी बाइबलें

इसी दौरान लोग बाइबल का अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद करते रहे। जैसे, करीब 1,600 साल पहले एक बाइबल थी, सीरियाई पेशीटा, जो काफी जानी-मानी है। लेकिन बड़े पैमाने पर आम लोगों की भाषा में बाइबल का अनुवाद करने का काम आज से करीब 600 साल पहले ही शुरू हुआ।

सन्‌ 1380 के आस-पास इंग्लैंड में जॉन विक्लिफ ने अँग्रेज़ी में बाइबल का अनुवाद किया, जो उसके देश के लोगों की भाषा थी। इस तरह उसने पुरानी भाषा के बंधन तोड़ना शुरू किया। कुछ समय बाद योहानेस गूटेनबर्ग ने छपाई मशीन का ईजाद किया। अब विद्वानों के लिए आम लोगों की भाषाओं में नए अनुवाद तैयार करना और पूरे यूरोप में बाँटना आसान हो गया।

जब दूसरे विद्वानों ने भी अँग्रेज़ी में बाइबल का अनुवाद किया, तो कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि एक ही भाषा में इतनी बाइबलों की क्या ज़रूरत है? करीब 300 साल पहले अँग्रेज़ पादरी जॉन लूइस ने लिखा कि वक्‍त के गुज़रते “भाषा पुरानी होती रहती है और उसे समझना मुश्‍किल होता जाता है, इसलिए ज़रूरी है कि पुरानी बाइबलों की जाँच की जाए और बाइबल का अनुवाद ऐसी भाषा में किया जाए, जो नयी पीढ़ी के लोग बोलते और समझते हों।”

आज बाइबल के विद्वान पुरानी बाइबलों की ज़्यादा अच्छी तरह जाँच कर सकते हैं। उन्हें पुराने ज़माने की इब्रानी, यूनानी और अरामी भाषाओं की बेहतर समझ है। इसके अलावा हाल ही में बाइबल की पुरानी हस्तलिपियाँ भी मिली हैं। इस वजह से वे जान पाते हैं कि सबसे पहले लिखी गयी बाइबल में क्या था।

नए ज़माने की भाषा में अनुवाद की गयी बाइबल बहुत मायने रखती है। लेकिन हमें यह भी ध्यान में रखना है कि हम कौन-सी बाइबल पढ़ते हैं। अगर अनुवाद करनेवालों ने परमेश्‍वर से प्यार होने की वजह से बाइबल का नया संस्करण तैयार किया है, तो वह हमारे बहुत काम का हो सकता है।