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पवित्र शास्त्र क्या कहता है?

विश्वास

विश्वास

कुछ लोग खुद को धार्मिक तो कहते हैं, पर वे “विश्वास” का मतलब समझा नहीं पाते। विश्वास क्या है और यह हमारे लिए इतना मायने क्यों रखता है?

किसी पर विश्वास करने का मतलब क्या है?

लोग क्या कहते हैं?

कई लोगों को लगता है कि लोग बगैर सोचे-समझे, बगैर सबूत जाँचें किसी भी बात पर विश्वास कर लेते हैं। उदाहरण के लिए अगर एक धार्मिक व्यक्ति कहे, “मुझे ईश्वर पर विश्वास है।” और उससे यह पूछा जाए, “आप उस पर विश्वास क्यों करते हैं?” तो हो सकता है कि वह यह कहे, “मेरी परवरिश ऐसी ही हुई है” या “मुझे बचपन से यही सिखाया गया है।” ऐसे में हम शायद सोचें कि किसी बात पर विश्वास करने में या उसे आँख मूँदकर मान लेने में क्या फर्क है।

पवित्र शास्त्र क्या कहता है?

“विश्वास, आशा की हुई चीज़ों का पूरे भरोसे के साथ इंतज़ार करना है और उन असलियतों का साफ सबूत है, जो अभी दिखायी नहीं देतीं।” (इब्रानियों 11:1) इस आयत में दिए शब्द “पूरे भरोसे के साथ इंतज़ार” का मतलब सिर्फ दिली ख्वाहिश रखना या कोई चीज़ पाने की उम्मीद करना नहीं है। इन शब्दों का मतलब है, सबूत के आधार पर किसी पर विश्वास करना और एक व्यक्ति किसी बात का पूरे भरोसे से इंतज़ार या उम्मीद तभी करता है, जब उसके पास ऐसा करने की कोई ठोस वजह हो।

[परमेश्वर] के अनदेखे गुण दुनिया की रचना के वक्‍त से साफ दिखायी देते हैं यानी यह कि उसके पास अनंत शक्ति है और सचमुच वही परमेश्वर है। क्योंकि ये गुण उसकी बनायी चीज़ों को देखकर अच्छी तरह समझे जा सकते हैं।”रोमियों 1:20.

विश्वास होना क्यों ज़रूरी है?

पवित्र शास्त्र क्या कहता है?

“विश्वास के बिना परमेश्वर को खुश करना नामुमकिन है, इसलिए कि जो उसके पास आता है उसका यह यकीन करना ज़रूरी है कि परमेश्वर सचमुच है और वह उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।”—इब्रानियों 11:6.

जैसे पहले भी ज़िक्र किया गया है कि कुछ लोग परमेश्वर पर सिर्फ इसलिए विश्वास करते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा करना सिखाया गया है। वे शायद कहें, “मेरी परवरिश ऐसी ही हुई है।” लेकिन परमेश्वर चाहता है कि जो उसकी उपासना करते हैं, वे उसके वजूद पर यकीन करें और इस बात पर भी कि वह उनसे प्यार करता है। इसी वजह से पवित्र शास्त्र में लिखा है कि हम उसकी खोज करें, ताकि हम उसे जान सकें।

“परमेश्वर के करीब आओ और वह तुम्हारे करीब आएगा।”याकूब 4:8.

आप विश्वास कैसे कर सकते हैं?

पवित्र शास्त्र क्या कहता है?

पवित्र शास्त्र में लिखा है, “संदेश सुनने के बाद ही विश्वास किया जाता है।” (रोमियों 10:17) परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए सबसे पहले हमें ‘सुनना’ होगा कि शास्त्र में उसके बारे में क्या बताया गया है। (2 तीमुथियुस 3:16) पवित्र शास्त्र से सीखने से आपको कई अहम सवालों के जवाब मिलेंगे। जैसे, क्या सच में कोई परमेश्वर है? परमेश्वर कौन है? क्या परमेश्वर को मेरी कोई परवाह है? परमेश्वर ने हमारे भविष्य के लिए क्या सोचा है?

परमेश्वर के वजूद में होने के ढेर सारे सबूत हमारे आस-पास हैं

यहोवा के साक्षियों को आपके साथ पवित्र शास्त्र से चर्चा करने में बहुत खुशी होगी। जैसे हमारी वेबसाइट jw.org में बताया गया है, “यहोवा के साक्षी, लोगों को बाइबल के बारे में सिखाना पसंद करते हैं, लेकिन हम कभी किसी पर दबाव नहीं डालते कि वह हमारे धर्म का सदस्य बने। इसके बजाय, हम सिर्फ यह बताते हैं कि बाइबल क्या सिखाती है और हम यह जानते हैं कि हरेक को यह चुनने का अधिकार है कि वह किन बातों पर विश्वास करेगा।”

ऊपर बतायी गयी बातों पर गौर करने के बाद आखिर में हम यही कहेंगे कि आपका विश्वास उन सबूतों के आधार पर होना चाहिए, जिनकी जाँच आपने खुद पवित्र शास्त्र से की है। इस तरह आप उन लोगों की मिसाल पर चलेंगे जिनके बारे में शास्त्र में लिखा है, “उन्होंने मन की बड़ी उत्सुकता से वचन स्वीकार किया। वे हर दिन बड़े ध्यान से शास्त्र की जाँच करते रहे कि जो बातें वे सुन रहे थे वे ऐसी ही लिखी हैं या नहीं।”—प्रेषितों 17:11. ▪ (g16-E No. 3)

“हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए ज़रूरी है कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्वर का और यीशु मसीह का, जिसे तू ने भेजा है, ज्ञान लेते रहें।”यूहन्ना 17:3.