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किस बात ने मुझे यहोवा के साक्षियों की तरफ खींचा

किस बात ने मुझे यहोवा के साक्षियों की तरफ खींचा

किस बात ने मुझे यहोवा के साक्षियों की तरफ खींचा

थोमस ओरोसको की ज़ुबानी

जब मैं पहली बार यहोवा के साक्षियों की सभा में हाज़िर हुआ, तो मैंने देखा कि एक छोटा लड़का स्टेज से भाषण दे रहा था। वह कद में इतना छोटा था कि पोडियम की वजह से बराबर दिखायी नहीं दे रहा था। मगर वह बड़ा शांत और संतुलित था और बड़े हुनर के साथ बोल रहा था। उसे देखकर मैं वाकई दंग रह गया।

मैंने गौर किया कि वहाँ हाज़िर सभी लोग बड़े ध्यान से उस लड़के का भाषण सुन रहे थे। मैं बोलीविया फौज का कमांडर था और मिलिटरी के एक प्रतिनिधि के तौर पर अमरीका आया-जाया करता था। मैं राष्ट्रपति का खास सहायक भी रह चुका था। लोग मेरा बड़ा आदर-सम्मान करते थे। लेकिन सभा में लोगों ने उस छोटे लड़के की बातें सुनकर उसे जो इज़्ज़त बख्शी, वह देखकर मैं अपनी ज़िंदगी के लक्ष्यों पर दोबारा सोचने के लिए मज़बूर हो गया।

सन्‌ 1932-1935 के दौरान परागुए और बोलीविया के बीच जो चाको युद्ध छिड़ा, उसमें मेरे पिताजी की मौत हो गयी। जल्द ही उसके बाद मेरा दाखिला एक कैथोलिक बोर्डिंग स्कूल में कर दिया गया। कई सालों तक मैं रोज़ चर्च जाया करता था और वहाँ गाने गाता था। मैं कैथोलिक धर्म-शिक्षा की क्लास में भी जाता था और रटी-रटाई प्रार्थनाएँ दोहराता था। मैं ऑलटर बॉय के साथ-साथ चर्च की गायक मंडली का सदस्य भी था। मगर हैरानी की बात है, मैंने कभी बाइबल नहीं पढ़ी थी। पढ़ना तो दूर मैंने बाइबल देखी भी नहीं थी।

जब कोई त्योहार होता तो मुझे बड़ा मज़ा आता था क्योंकि वे मेरे लिए किसी पार्टी से कम नहीं थे। और मुझे रोज़ के कामों से छुट्टी भी मिल जाती थी। लेकिन पादरी और धर्म की शिक्षा देनेवाले मुझे बिलकुल पसंद नहीं थे क्योंकि वे बड़े पत्थर दिल थे। मैं उनसे कोसों दूर भागता था। मैंने फैसला कर लिया था कि धर्म वगैरह में ज़्यादा शरीक नहीं होऊँगा।

फौजी ठाट-बाट ने मुझे लुभाया

एक दिन खिलखिलाती धूप में दो फौजी अफसर शानदार कपड़ों में हमारे शहर तारीज़ा आए। वे दोनों बोलीविया की राजधानी लापाज़ा से छुट्टियों पर आए थे। वे बड़ी शान से बाज़ारों के बीचों-बीच होते हुए गुज़रे। मैं उनकी ठाट-बाट देखकर उन पर फिदा हो गया। वे साफ-सुथरी हरी वरदी में थे और टोप लगाए हुए थे जिसके किनारे चमक रहे थे। उसी वक्‍त मैंने ठान लिया कि मैं एक फौजी अफसर बनूँगा। मैं सोचता था कि एक फौजी की ज़िंदगी बड़ी रोमांचक होती है, वे बहादुरी के बड़े-बड़े काम करते हैं और खूब नाम कमाते हैं।

सन्‌ 1949 में, मैं बोलीविया के मिलिटरी कॉलेज में दाखिला लेने गया। उस वक्‍त मैं सोलह साल का था। कॉलेज के बाहर लड़कों की एक लंबी कतार लगी हुई थी। मैं अपने बड़े भाई के साथ कतार में खड़ा हो गया। कॉलेज के गेट पर पहुँचते ही भैया ने मेरी मुलाकात लेफ्टिनेंट से करायी और उनसे गुज़ारिश की कि मेरा अच्छी तरह खयाल रखें। फिर उन्होंने लेफ्टिनेंट से मेरी तारीफ के पुल बाँधे। उनके जाने के बाद, हर नए फौजी की तरह मेरा भी स्वागत किया गया। मुझे मारकर ज़मीन पर गिरा दिया गया और धमकी दी गयी, “हम देखते हैं कौन किसकी सिफारिश करता है।” इस तरह शुरू हुआ मेरा फौजी अनुशासन। लेकिन मैंने चुपचाप सब सह लिया। ज़्यादा कुछ नहीं हुआ बस मेरे अहं को चोट पहुँची।

कुछ समय बाद मैं लड़ना सीख गया और जल्द ही एक इज़्ज़तदार अफसर बन गया। अपने तजुरबे से मैंने सीखा कि एक फौजी के साफ-सुथरे कपड़े और उसकी ठाठ-बाठ, सबकुछ आँखों का धोखा है।

एक ऊँचा ओहदा हासिल करना

फौजी ज़िंदगी की शुरूआत में मुझे ट्रेनिंग के लिए अर्जण्टिना भेजा गया। वहाँ जेनरल बैल्ग्‌रैनो नाम के एक जंगी जहाज़ पर मैंने ट्रेनिंग हासिल की। इस जहाज़ पर करीब हज़ार लोग रह सकते थे। दूसरे विश्‍व युद्ध के पहले, यह जंगी जहाज़ अमरीका के पास था और इसका नाम था यू.एस.एस फिनीक्स। और जब जापानी सेना ने 1941 में पर्ल हार्बर, हवाई पर हमला किया, तो यह जहाज़ सही-सलामत बच गया।

धीरे-धीरे मैं कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ता गया और बोलीविया की नौ-सेना का दूसरा सबसे बड़ा अफसर बन गया। हमारी नौ-सेना जलमार्गों पर गश्‍त लगाती थी। ये जलमार्ग बोलीविया की सरहदें थीं। इन जलमार्गों में अमज़ोन घाटी की नदियाँ और टिटिकाका झील भी शामिल थी। यह दुनिया की एकमात्र ऐसी झील है, जो बहुत ऊँचाई पर है और जिसमें जहाज़ चलते हैं।

इसी दौरान सन्‌ 1980 के मई महीने में मुझे मिलिटरी के खास प्रतिनिधियों के एक समूह का सदस्य चुना गया। और हमें अमरीका की राजधानी वॉशिंगटन डी.सी भेजा गया। इन प्रतिनिधियों में वायु, जल और स्थल सेना से एक-एक सबसे ऊँचा ओहदा रखनेवाले अफसर को चुना गया। मैं बाकियों से ज़्यादा सालों से मिलिटरी में सेवा कर रहा था इसलिए मुझे समूह का अध्यक्ष ठहराया गया। मैं करीब दो साल तक अमरीका में रहा और बाद में मुझे बोलीविया के राष्ट्रपति का खास सहायक बनाया गया।

फौजी कमांडर होने की वजह से मुझे मजबूरन हर रविवार चर्च जाना पड़ता था। पादरियों को युद्धों और क्रांतियों में हिस्सा लेते देख मैं बड़ी कशमकश में पड़ गया था। क्योंकि मैं जानता था कि खून बहानेवाली लड़ाइयों को बढ़ावा देना गलत था। मगर यह सब ढोंग देखकर धर्म पर से मेरा विश्‍वास नहीं उठा बल्कि मैं सच्चाई ढूँढ़ने के लिए कायल हो गया। मैंने पहले कभी बाइबल नहीं पढ़ी थी, लेकिन अब मैं बाइबल पढ़ने लगा। मैं यूँ ही कहीं से भी पढ़ना शुरू कर देता था।

सभाओं में अच्छा कायदा

मुझे यह जानकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि मेरी पत्नी मेन्युला, एक मिशनरी के साथ बाइबल अध्ययन कर रही है। वह मिशनरी यहोवा की एक साक्षी थी और उसका नाम जेनेट था। मेन्युला साक्षियों की सभाओं के लिए उनके उपासना घर जाने लगी, जिसे वे राज-घर कहते थे। मुझे उसे वहाँ छोड़ने में कोई एतराज़ नहीं था, लेकिन मैं उन सभाओं में नहीं जाना चाहता था। क्योंकि मुझे लगता था कि सभाओं में बहुत शोरगुल होता है और वहाँ सभी जज़्बाती होते हैं।

एक दिन मेन्युला ने कहा कि जैनट का पति मुझसे मिलना चाहता है। मैंने पहले तो इनकार कर दिया। फिर मैंने सोचा कि धर्म के बारे में मैं जितना जानता हूँ उससे उसकी हर बात काट दूँगा। और मैं जैनट के पति, ईयन से मिलने के लिए राज़ी हो गया। जब हम पहली बार मिले, तो मैं उसकी बातों से ज़्यादा उसके व्यवहार से बहुत प्रभावित हुआ। ईयन को बाइबल का अच्छा ज्ञान था और उसे अच्छी तालीम भी मिली थी। मगर उसने मुझे नीचा दिखाने की ज़रा भी कोशिश नहीं की। इसके बजाय, वह बड़े प्यार और इज़्ज़त से पेश आया।

इसके अगले हफ्ते मैंने राज-घर जाने का फैसला किया। और जैसा कि मैंने शुरू में बताया, वहाँ मैंने उस छोटे-से लड़के का भाषण सुना। जिस तरह उस लड़के ने बाइबल की यशायाह की किताब से आयतें पढ़कर समझायी, मैं ताड़ गया कि यह वाकई एक अनोखा संगठन है। बड़ी हैरानी की बात है, एक वक्‍त मैं अपनी जवानी में इज़्ज़तदार मिलिटरी अफसर बनना चाहता था। लेकिन आज मैं उस लड़के की तरह बनना चाहता हूँ और बाइबल से सिखाना चाहता हूँ। मुझे ऐसा लगा मानो अचानक मेरा दिल पिघल गया और मैं सच्चाई में दिलचस्पी लेने लगा।

समय के गुज़रते, मुझे साक्षियों की कुछ और बातें छू गयीं। वे वक्‍त के बड़े पाबंद थे। सभाओं में वे हमेशा मुझसे दुआ-सलाम करते थे। मुझे कभी ऐसा नहीं लगा जैसे मैं कोई अजनबी हूँ। उनका साफ-सुथरा और सलीकेदार पहनावा भी मुझे भा गया। और सबसे अच्छी बात जो मुझे लगी वह थी कि उनकी सभाएँ, जो बड़ी तरतीब से चलायी जाती थीं। जैसे, अगर एक भाषण फलाँ तारीख या दिन पर दिया जाना है, तो ठीक उसी दिन वह भाषण हमें सुनने को मिलेगा। मैं इस बात की कदर करता हूँ कि प्यार की बिनाह पर यहाँ सारी चीज़ें कायदे से की जाती हैं न कि डाँट-डपटकर।

पहली बार सभा में हाज़िर होने के बाद, मैं ईयन के साथ बाइबल अध्ययन करने के लिए राज़ी हो गया। हमने आप पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रह सकते हैं किताब से अध्ययन शुरू किया। * मुझे आज भी उस किताब के अध्याय तीन में दी वह तसवीर याद है, जिसमें एक पादरी लड़ाई पर जानेवाले सैनिकों को आशीष दे रहा है। मुझे उस तसवीर पर ज़रा भी शक नहीं हुआ क्योंकि मैंने खुद अपनी आँखों से ऐसा होते देखा था। राज-घर से मैंने रीज़निंग फ्रॉम द स्क्रिप्चर्स किताब की एक कॉपी ली। जब मैंने उस किताब में पढ़ा कि बाइबल युद्ध में हिस्सा लेने के बारे में क्या कहती है, तो मैं समझ गया कि मुझे अपनी ज़िंदगी में कुछ बदलाव करने हैं। मैंने ठान लिया कि मैं कभी कैथोलिक चर्च की तरफ मुड़कर भी नहीं देखूँगा। मैं बिना नागा साक्षियों की सभाओं में जाने लगा। मैंने फौज से रिटायर होने का फैसला कर लिया।

बपतिस्मे के लिए तरक्की करना

कुछ हफ्तों बाद, मुझे पता चला कि आनेवाले एक अधिवेशन के लिए एक स्टेडियम की साफ-सफाई की जानी है। हमारी मंडली भी सफाई के लिए जा रही थी। मैं अधिवेशन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था, इसलिए मैं भी साक्षियों के साथ स्टेडियम की सफाई करने चला गया। मैंने उनके साथ मिलकर काम किया और मुझे बहुत मज़ा आया। जब मैं झाडू लगा रहा था तो एक आदमी मेरे पास आया और उसने पूछा, क्या आप कभी सेना में बड़े अफसर थे?

मैंने कहा, “हाँ।”

वह हैरान होकर कहने लगा, “मुझे अपनी आँखों पर विश्‍वास नहीं हो रहा कि फौज का एक बड़ा अफसर झाडू लगा रहा है!” मैंने आज तक किसी बड़े अफसर को ज़मीन से कागज़ का एक टुकड़ा तक उठाते नहीं देखा, तो फिर झाडू लगाना तो दूर की बात है। यह आदमी कोई और नहीं बल्कि मेरा मिलिटरी ड्राइवर था, जो यहोवा का साक्षी बन चुका था!

प्यार जो बाँधे रखता है

फौज में एक आदमी को उसका ओहदा और पद देखकर इज़्ज़त दी जाती थी और यह बात मेरे ज़हन में घर कर चुकी थी। मुझे याद है, मैं अकसर पूछा करता था कि अगर एक साक्षी कोई खास ज़िम्मेदारी सँभालता हो या कोई खास काम करता हो, तो क्या उसे दूसरे साक्षियों से ज़्यादा सम्मान दिया जाता है। मेरे अंदर यह सोच बनी रही लेकिन फिर एक ऐसा वाकया हुआ जिससे मेरी सोच पूरी तरह बदल गयी।

सन्‌ 1989 में, मैंने सुना कि न्यू यॉर्क से यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय का एक सदस्य बोलीविया आ रहा है और वह स्टेडियम में एक भाषण देगा। मैं यह देखने के लिए बेताब था कि संगठन के इस “खास” सदस्य का किस तरह स्वागत किया जाएगा। मुझे लगा कि इतनी भारी ज़िम्मेदारी सँभालनेवाला ज़रूर बड़े शोर-शराबे और धूम-धाम के साथ आएगा।

अधिवेशन शुरू हो गया, लेकिन ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हमारे बीच कोई बड़ी हस्ती मौजूद है। मैं थोड़ा सोच में पड़ गया। हमारी बगल में एक बुज़ुर्ग जोड़ा बैठा था। मेन्युला ने गौर किया कि उस बुज़ुर्ग महिला के पास अँग्रेज़ी गीत पुस्तक है। जब ब्रेक हुआ तो मेन्युला ने उससे बातें की और फिर वह जोड़ा चला गया।

पर ज़रा सोचिए मेन्युला और मुझे कितना ताज्जुब हुआ होगा जब उस महिला का पति स्टेज पर अधिवेशन का खास भाषण देने आया! उसी वक्‍त मेरे मन में ओहदे, सम्मान, अधिकार और पदवी को लेकर जो सोच थी उसकी कायापलट हो गयी। बाद में, मैं दूसरों से कह रहा था: “सोचिए शासी निकाय का सदस्य हमारे साथ बैठा था और वह भी ऐसी सीट पर जो आरामदायक नहीं थी!”

आज मुझे यह सोचकर हँसी आती है कि ईएन ने कितनी बार मुझे मत्ती 23:8 में दर्ज़ यीशु की यह बात समझाने की कोशिश की, “तुम सब भाई हो।” लेकिन मेरी समझ में कभी नहीं आयी।

पहली बार प्रचार करना

फौज छोड़ने के बाद, ईएन ने मुझे घर-घर के प्रचार में उसके साथ आने के लिए कहा। (प्रेषितों 20:20) हम एक ऐसे इलाके में प्रचार करने गए, जहाँ हर जगह फौज के लोग रहते थे। मैं वहाँ नहीं जाना चाहता था फिर भी हम वहाँ गए। जब मैंने एक दरवाज़ा खटखटाया, तो इत्तफाक से फौज के उस बड़े अफसर ने दरवाज़ा खोला जिससे मैं कतई मिलना नहीं चाहता था। उसे देखते ही मैं चौंक गया। फिर जब उसने मेरे हाथ में ब्रीफकेस और बाइबल देखी, तो मुझे नीचा दिखाने के इरादे से पूछा, “क्या हो गया है तुम्हें?” यह सुनकर मैं और भी घबरा गया।

मैंने फौरन मन में एक छोटी-सी प्रार्थना की और मेरे अंदर आत्म-विश्‍वास और शांति छा गयी। उस अफसर ने मेरी बात ध्यान से सुनी और कुछ बाइबल साहित्य भी लिए। इस अनुभव से मेरा हौसला मजबूत हुआ और मैंने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित कर दी। फिर 3 जनवरी 1990 को पानी में बपतिस्मा लेकर मैंने अपना समर्पण ज़ाहिर किया।

कुछ वक्‍त बाद मेरी पत्नी, बेटा और बेटी यहोवा के साक्षी बन गए। आज मैं खुशी-खुशी मंडली में प्राचीन की ज़िम्मेदारी निभा रहा हूँ। और पूरे समय के सेवक के तौर पर परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी का ऐलान भी करता हूँ। सबसे अनमोल सम्मान जो मुझे मिला है, वह यह है कि मैं यहोवा को जानता हूँ और वह मुझे पहचानता है। यह सम्मान किसी भी ओहदे या पदवी से कहीं बढ़कर है, जिसे पाने की हम उम्मीद करते हैं। वाकई कायदे और तरतीब से काम करने के लिए ज़रूरी नहीं कि आप सख्ती बरतें और लकीर के फकीर हों। इसके लिए ज़रूरी है कि आप प्यार और परवाह दिखाएँ। जी हाँ, यहोवा व्यवस्था का परमेश्‍वर है, लेकिन सबसे बढ़कर वह प्यार का परमेश्‍वर है।—1 कुरिंथियों 14:33, 40; 1 यूहन्‍ना 4:8. (g10-E 03)

[फुटनोट]

^ पैरा. 21 इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है, मगर अब इसकी छपाई बंद हो चुकी है।

[पेज 15 पर तसवीर]

सन्‌ 1950 में मेरे बड़े भाई रीनेटो के साथ

[पेज 15 पर तसवीर]

चीन और दूसरे देशों से आए मिलिटरी अफसरों के साथ एक समारोह में