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क्या इसे रचा गया था?

रौशनी सोखनेवाले तितलियों के पंख

रौशनी सोखनेवाले तितलियों के पंख

मानव जाति पूरी तरह ज़मीन से मिलनेवाले ईंधन पर निर्भर है। इसलिए वैज्ञानिकों की कोशिश है कि वे अलग-अलग तरीकों का पता लगाएँ जिससे इंसानों की ज़रूरतें पूरी हो सकें। वे सूरज की किरणों को इकट्ठा करनेवाले उपकरणों को और बेहतर बनाने में जुटे हैं। एक वैज्ञानिक का कहना है, “शायद इस मुश्किल का हल . . . हमारी आँखों के सामने फड़-फड़ा रहा हो।” वह क्या है?

तितली के पंख पर बनी पपड़ी में मधु-मक्खी के छत्ते की तरह छोटे-छोटे छेद होते हैं

गौर कीजिए: तितलियाँ ठंड के मौसम में गरम रहने के लिए, अपने पंखों को सूरज की गर्मी में फैला लेती हैं। मिसाल के लिए, मखरूती झंडे तितली की कुछ प्रजातियाँ बड़ी अच्छी तरह से सूरज की रौशनी अपने अंदर लेकर उसे सोख लेती हैं। अपने पंखों की बनावट और गहरे रंग की वजह से ये तितलियाँ ऐसा कर पाती हैं। इनके पंख महीन झिल्ली से बने होते हैं जिनमें हज़ारों नन्हीं-नन्हीं पपड़ियाँ होती हैं। इन पपड़ियों में ढेर सारे छोटे-छोटे छेद होते हैं जो मधु-मक्खी के छत्ते की तरह दिखते हैं। छेदों की इन कतारों के बीच थोड़ा ऊपर की ओर उठी एक परत होती है जिसका आकार कुछ इस तरह ‘’ है, जिससे सूरज की रौशनी सोखने में मदद मिलती है। तितलियों की इस बेमिसाल बनावट की वजह से सूरज की किरणें बाहर नहीं निकल पातीं, जिससे उनके पंखों का रंग गहरा काला बना रहता है और तितलियाँ बड़े आराम से गरमी का मज़ा ले पाती हैं।

साइंस डेली पत्रिका का कहना है, “कुदरत में बहुत-सी नाज़ुक चीज़ें मौजूद हैं और तितलियों का पंख उनमें से एक है। हालाँकि यह दिखने में नाज़ुक होती हैं, लेकिन इनकी बनावट ने बड़े-बड़े खोजकर्ताओं को हिलाकर रख दिया है। इससे उन्हें प्रेरणा मिली है कि वे आनेवाले दिनों में एक नयी तकनीक अपनाकर हाइड्रोजन गैस का उत्पादन दुगना कर सकें। ऐसी तकनीक जिसमें पानी और सूरज इस्तेमाल हो और मिलनेवाला ईंधन वातावरण पर बुरा असर न करे।” मुमकिन है कि भविष्य में इसकी मदद से सोलार (सौर) से जुड़े और ऑप्टिकल (देखने के लिए इस्तेमाल होनेवाले) उपकरण बनाए जाएँगे।

आपको क्या लगता है? तितलियों के पंखों में रौशनी सोखने की जो खूबी है क्या यह विकासवाद की देन है? या क्या इसे रचा गया था? ▪ (g14-E 08)