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सुखी परिवार का राज़

साथ मिलकर झगड़े सुलझाएँ

साथ मिलकर झगड़े सुलझाएँ

पति का कहना है: “शादी के बाद, मैं और सारा * मेरे माता-पिता के साथ रहने लगे। एक दिन जब मेरे भाई की गर्लफ्रेंड घर आयी हुई थी, तब जाते वक्‍त उसने मुझसे कहा, क्या आप मुझे अपनी कार में घर छोड़ देंगे। मैंने हाँ कर दी और अपने बेटे के साथ उसे घर छोड़ने गया। लेकिन जब मैं वापस आया, तो सारा का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। मुझे देखते ही वह भड़क उठी। फिर क्या था, हम दोनों में तूतू-मैंमैं होने लगी। और वहीं घरवालों के सामने उसने मुझे दिलफेंक कहा। मैं भी तैश में आ गया और उसे चार बातें सुना दीं, जिससे उसका गुस्सा और भड़क उठा।”

पत्नी का कहना है: “हमारे बेटे को कुछ बड़ी बीमारी थी और उस वक्‍त हम तंगी से गुज़र रहे थे। इसलिए जब मेरे पति फर्नांडो, हमारे बेटे को लेकर अपने भाई की गर्लफ्रेंड को छोड़ने गए, तो मुझे कई वजहों से बुरा लगा। जब वे घर लौटे, तो मैंने आव देखा न ताव और उन पर अपने दिल का गुबार निकाल दिया। हमारे बीच ज़बरदस्त झगड़ा हुआ और हमने एक-दूसरे को खूब बुरा-भला कहा। लेकिन बाद में, मुझे बहुत खराब लगा।”

अगर एक पति-पत्नी में तकरार होती है, तो क्या इसका यह मतलब है कि वे एक-दूसरे से प्यार नहीं करते? ऐसी बात नहीं। फर्नांडो और सारा, जिनका ऊपर ज़िक्र किया गया है, एक-दूसरे से बेइंतिहा प्यार करते हैं। लेकिन हकीकत तो यह है कि खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी में भी पति-पत्नी के बीच कभी-कभार तकरार हो ही जाती है।

तो फिर किस वजह से झगड़े होते हैं? और आप क्या कर सकते हैं, ताकि ये झगड़े आपकी शादीशुदा ज़िंदगी को तबाह न कर दें? शादी एक ऐसा बंधन है, जिसकी शुरूआत परमेश्‍वर ने की है। इसलिए यह लाज़िमी है कि हम उसके वचन, बाइबल की जाँच करें और देखें कि वह झगड़ों को निपटाने के बारे में क्या कहता है।—उत्पत्ति 2:21, 22; 2 तीमुथियुस 3:16, 17.

चुनौतियों को समझना

ज़्यादातर शादीशुदा जोड़े एक-दूसरे के साथ प्यार और नरमी से पेश आना चाहते हैं। लेकिन बाइबल यह हकीकत बयान करती है कि “सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं।” (रोमियों 3:23) इसलिए जब कोई मतभेद होता है, तो जज़बातों पर काबू रखना मुश्‍किल हो सकता है। और अगर बहस शुरू हो जाए, तो कुछ पति-पत्नियों के लिए एक-दूसरे पर चीखने-चिल्लाने और जली-कटी सुनाने से खुद को रोक पाना बहुत मुश्‍किल हो सकता है। (रोमियों 7:21; इफिसियों 4:31) पति-पत्नी के बीच और किन वजहों से तनाव पैदा हो सकता है?

अकसर देखा गया है कि पति-पत्नी के बात करने का तरीका एक-दूसरे से अलग होता है। मिचीको कहती है, “शादी के बाद मैंने जाना कि किसी विषय पर बात करने का हम दोनों का तरीका एकदम अलग था। मैं सिर्फ यह नहीं बताती कि क्या हुआ, लेकिन कैसे हुआ और क्यों हुआ यह भी बताना पसंद करती हूँ। जबकि मेरे पति को इन सब बातों में कोई दिलचस्पी नहीं, वे तो बस यह जानना चाहते हैं कि आखिर में क्या हुआ।”

मिचीको की तरह कई पति-पत्नी ऐसी ही समस्या का सामना करते हैं। एक साथी शायद किसी मतभेद पर खुलकर बात करना चाहे। जबकि दूसरा साथी, बहस में पड़ने के डर से उस बारे में बात करना न चाहे। कभी-कभी ऐसा होता है कि जितना ज़्यादा एक साथी उस मतभेद पर बात करने की कोशिश करता है, दूसरा उसे उतना ही टालने की कोशिश करता है। क्या आपकी शादीशुदा ज़िंदगी में कुछ ऐसे ही हालात पैदा हुए हैं? क्या आपमें से कोई, किसी मुद्दे पर बात करना चाहता है और दूसरा हमेशा उसे टालना चाहता है?

एक और बात पर गौर कीजिए। एक इंसान की परवरिश का असर, उसकी इस सोच पर पड़ सकता है कि पति-पत्नी को आपस में किस तरह बात करनी चाहिए। और शायद इसी वजह से शादीशुदा जोड़ों में तनाव पैदा हो सकता है। जस्टिन, जिसकी शादी को पाँच साल हुए हैं, कहता है, “मैं ऐसे परिवार से हूँ, जहाँ अपनी बात खुलकर कहने की हमारी आदत नहीं थी। इसलिए मुझे अपने ज़जबातों को ज़ाहिर करना मुश्‍किल लगता है। और इसी वजह से कभी-कभी मेरी पत्नी खीज उठती है। क्योंकि उसके परिवार में सभी लोग खुलकर अपने विचारों और भावनाओं को ज़ाहिर करते हैं। और उसे भी अपनी भावनाओं को साफ-साफ बताने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती।”

समस्याओं का निपटाने की कोशिश क्यों करें?

खोजकर्ताओं का कहना है कि एक खुशहाल शादी की निशानी यह नहीं कि पति-पत्नी कितनी बार एक-दूसरे को ‘आई लव यू’ कहते हैं। और ना ही उनका एक-दूसरे को लैंगिक रूप से सुखी रखना या बेशुमार दौलत का होना एक खुशहाल शादी के लिए निहायत ज़रूरी है। इसके बजाय, एक कामयाब शादी की सबसे बड़ी निशानी यह है कि पति-पत्नी कितनी अच्छी तरह झगड़ों को सुलझा पाते हैं।

इसके अलावा, यीशु ने कहा कि जब एक स्त्री-पुरुष शादी करते हैं, तो इस बंधन में उन्हें परमेश्‍वर जोड़ता है, न कि कोई इंसान। (मत्ती 19:4-6) इसलिए, एक कामयाब और खुशहाल शादी से परमेश्‍वर का आदर होता है। लेकिन अगर एक पति अपनी पत्नी के लिए प्यार और लिहाज़ नहीं दिखाएगा, तो यहोवा परमेश्‍वर उसकी प्रार्थनाओं को अनसुना कर देगा। (1 पतरस 3:7) और अगर एक पत्नी अपने पति का आदर नहीं करेगी, तो वह दरअसल यहोवा का अपमान कर रही होगी। क्योंकि यहोवा ने ही पति को घर का मुखिया ठहराया है।—1 कुरिन्थियों 11:3.

कामयाबी का राज़—शब्दों के नश्‍तर चुभाने की आदत से दूर रहिए

चाहे आपके बात कहने का तरीका जो भी हो या आपकी परवरिश जैसे भी माहौल में हुई हो, आपको ऐसी बोली से दूर रहना होगा जिससे आपके साथी को चोट पहुँच सकती है। ऐसा करने पर ही आप बाइबल के उसूलों को लागू कर पाएँगे और आपसी झगड़े निपटा पाएँगे। खुद से नीचे दिए सवाल पूछिए:

‘जब मेरा साथी मुझे चोट पहुँचानेवाली बातें कहता है, तो क्या मैं भी वैसी बातें कहने से खुद को रोकता/ती हूँ?’

बाइबल में यह बुद्धि-भरी कहावत है, “नाक के मरोड़ने से लोहू निकलता है, वैसे ही क्रोध के भड़काने से झगड़ा उत्पन्‍न होता है।” (नीतिवचन 30:33) इस कहावत का क्या मतलब है? इसे समझने के लिए एक मिसाल लीजिए। घर के खर्चे बढ़ते जा रहे हैं, इसलिए एक पति-पत्नी अपने परिवार के बजट की जाँच करते हैं (एक साथी शायद कहे, “हमारे फिज़ूल के खर्चे कुछ ज़्यादा ही बढ़ गए, इसे कम करना होगा”)। इस पर उनमें मतभेद होता है और देखते-ही-देखते वह एक-दूसरे के स्वभाव पर उँगली उठाने लगते हैं (एक साथी शायद कहे, “खर्चे के मामले में तुम बिलकुल लापरवाह हो”)। यह सच है कि अगर आपका साथी आपकी ‘नाक मरोड़ता’ है यानी आपके स्वभाव पर उँगली उठाता है, तो शायद बदले में आप भी उसकी नाक ‘मरोड़ना’ चाहें। लेकिन इस तरह बदला लेने से गुस्सा बढ़ता है और झगड़े की आग और भी भड़क सकती है।

बाइबल के लेखक याकूब ने खबरदार किया था: “देखो, थोड़ी सी आग से कितने बड़े बन में आग लग जाती है। जीभ भी एक आग है।” (याकूब 3:5, 6) जब शादीशुदा जोड़े अपनी ज़बान पर लगाम नहीं देते, तो छोटे-छोटे मतभेद जल्द ही बड़े-बड़े झगड़ों में तबदील हो जाते हैं। और जिन शादियों में आए दिन पति-पत्नियों में ज़बरदस्त झगड़े होते हैं, ऐसे माहौल में प्यार का बढ़ना बहुत मुश्‍किल होता है।

चुभनेवाली बातों का जवाब, चुभनेवाली बातों से देने के बजाय क्या आप यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं, जिसने गाली सुनकर ‘गाली नहीं दी’? (1 पतरस 2:23) झगड़े को जल्द-से-जल्द शांत करने का सबसे बेहतरीन तरीका है, अपने साथी के नज़रिए को समझना और झगड़े को बढ़ाने में आपका जो हाथ था, उसके लिए उससे माफी माँगना।

इसे आज़माइए: अगली बार जब कोई नोक-झोंक होती है, तो खुद से पूछिए: ‘अगर मैं अपने साथी से कबूल करूँ कि किसी मामले के बारे में उसकी चिंताएँ जायज़ हैं, तो इससे मेरा क्या बिगड़ेगा? इस झगड़े को बढ़ाने में मेरा कितना हाथ है? मुझे अपनी गलतियाँ मानने से क्या बात रोकती है?’

‘क्या मैं अपने साथी के जज़बातों को हलका समझकर उन्हें दरकिनार करता/ती हूँ?’

बाइबल सलाह देती है, “सब के सब एक दिल और हमदर्द रहो।” (1 पतरस 3:8, हिन्दुस्तानी बाइबिल) आइए देखें कि किन दो वजहों से आप इस सलाह को मानने से चूक सकते हैं। एक वजह है, आप अपने साथी के सोच-विचार या भावनाओं को पूरी तरह न समझ पाएँ। मिसाल के लिए, आपका साथी किसी मसले को लेकर आपसे ज़्यादा परेशान है। ऐसे में आप शायद उससे कहें, “तुम बेकार में इतना परेशान हो रहे/ही हो।” हो सकता है, आपके कहने का इरादा नेक हो। आप उस मसले को सही नज़र से देखने में अपने साथी की मदद करना चाहते हों। लेकिन बहुत कम लोगों को इस तरह की बातों से तसल्ली मिलती है। चाहे पति हो या पत्नी, दोनों को इस बात का भरोसा होना चाहिए कि उसका साथी उसके जज़बातों को समझता है और उससे हमदर्दी रखता है।

घमंड दूसरी वजह है, जिससे एक इंसान शायद अपने साथी के जज़बातों को कौड़ी-भर का समझे। एक घमंडी इंसान खुद को ऊँचा उठाने के लिए हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता है। ऐसा करने के लिए शायद वह उन्हें ऐसे नाम से पुकारे, जिससे उनका अपमान हो। या उन्हें निकम्मा महसूस कराने के लिए उनकी तुलना दूसरों से करे। फरीसियों और शास्त्रियों की मिसाल लीजिए, जो यीशु के ज़माने में धर्मगुरुओं का एक समाज था। ये लोग इतने घमंडी थे कि जब कोई व्यक्‍ति उनसे अलग राय ज़ाहिर करता, तो वे उसे बुरी तरह ज़लील करते। यहाँ तक कि वे अपने साथी फरीसी को भी नहीं बख्शते थे। (यूहन्‍ना 7:45-52) लेकिन यीशु उनसे बिलकुल अलग था। जब लोग उससे अपनी दिल की बात कहते थे, तो वह उनसे हमदर्दी जताता था।—मत्ती 20:29-34; मरकुस 5:25-34.

ज़रा सोचिए, जब आपका साथी अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करता है, तो आप उसके साथ किस तरह पेश आते हैं? क्या आप अपने शब्दों, बात करने के लहज़े और चेहरे के हाव-भाव से हमदर्दी जताते हैं? या झट-से इस तरह पेश आते हैं, मानो उसकी भावनाएँ आपके लिए कोई अहमियत नहीं रखतीं?

इसे आज़माइए: आनेवाले हफ्तों में, ध्यान दीजिए कि आप अपने साथी से किस तरह बात करते हैं। अगर आप अपने साथी की बातों को गैर-ज़रूरी समझकर उस पर ध्यान नहीं देते हों या उसे कटाक्ष मारते हों, तो अपनी गलती के लिए फौरन माफी माँगिए।

‘क्या मुझे लगता है कि मेरा साथी सिर्फ अपने ही बारे में सोचता है?’

गौर कीजिए कि शैतान ने परमेश्‍वर के एक वफादार सेवक अय्यूब के बारे में उससे क्या कहा: “क्या अय्यूब परमेश्‍वर का भय बिना लाभ के मानता है? क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बान्धा?” (अय्यूब 1:9, 10) इन शब्दों से शैतान दरअसल यह कहना चाह रहा था कि अय्यूब मतलबी है, वह परमेश्‍वर की भक्‍ति सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए करता है।

इसी तरह अगर एक पति-पत्नी सावधान न रहें, तो वे भी एक-दूसरे के इरादों पर शक करने लग सकते हैं। मिसाल के लिए, जब आपका साथी आप पर मेहरबान होता है, तो क्या आप यह सोचने लगते हैं, ‘आज उसे मुझ पर इतना प्यार क्यों आ रहा है, उसे ज़रूर कुछ चाहिए या फिर वह कोई बात छिपाने की कोशिश कर रहा/ही है?’ या जब आपका साथी कोई गलती करता है, तो क्या उसकी इस भूल का आप यह मतलब निकाल बैठते हैं कि वह स्वार्थी है और उसे आपकी कोई परवाह नहीं? क्या आपको फौरन यह खयाल आता है कि उसने ऐसी ही गलती पहले भी की थी और आप इस गलती का भी हिसाब-किताब रख लेते हैं?

इसे आज़माइए: उन अच्छे कामों की एक सूची बनाइए, जो आपके साथी ने आपकी खातिर किए हैं और उसने ये काम किन अच्छे इरादों से किए हैं, उसे भी लिख लीजिए।

प्रेरित पौलुस ने लिखा, “प्रेम . . . बुराइयों का कोई लेखा-जोखा नहीं रखता।” (1 कुरिन्थियों 13:4, 5, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) सच्चा प्यार अंधा नहीं होता, न ही यह गलतियों का हिसाब-किताब रखता है। पौलुस ने यह भी लिखा कि प्रेम “सब बातों की प्रतीति करता है।” (1 कुरिन्थियों 13:7) इसका यह मतलब नहीं कि यह प्रेम आँख मूँदकर सब बातों पर विश्‍वास कर लेता है। लेकिन यह ऐसा प्रेम है, जो विश्‍वास करने को तैयार रहता है। यह प्रेम न तो शक्की है, न ही दूसरों को स्वार्थी समझता है। बाइबल जिस तरह का प्यार रखने का बढ़ावा देती है, वह माफ करने को तैयार होता है और यह मानकर चलता है कि दूसरों के इरादे नेक हैं। (भजन 86:5; इफिसियों 4:32) जब पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए ऐसा प्यार दिखाएँगे, तो यकीनन उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में खुशियों की बहार आ जाएगी। (w08 2/1)

खुद से पूछिए . . .

  • लेख की शुरूआत में जिस जोड़े का ज़िक्र किया गया है, उन्होंने क्या गलतियाँ कीं?

  • मैं अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में ऐसी गलतियाँ करने से कैसे दूर रह सकता/ती हूँ?

  • इस लेख में दिए किन मुद्दों पर खास मुझे काम करने की ज़रूरत है?

^ नाम बदल दिए गए हैं।