हबक्कूक 1:1-17
1 यह संदेश भविष्यवक्ता हबक्कूक* को दर्शन में मिला:
2 हे यहोवा, मैं कब तक पुकारता रहूँगा और तू अनसुना करता रहेगा?+
मैं कब तक दुहाई देता रहूँगा और तू मुझे हिंसा से नहीं बचाएगा?+
3 तू क्यों मुझे बुराई दिखाता है?
क्यों अत्याचार होने देता है?
मेरे सामने विनाश और हिंसा क्यों हो रही है?
लड़ाई-झगड़े क्यों बढ़ते जा रहे हैं?
4 कानून का डर किसी में नहीं रहाऔर कहीं इंसाफ नहीं होता।
नेक इंसान दुष्टों से घिरा हुआ है,तभी तो न्याय का खून हो रहा है।+
5 “राष्ट्रों को देखो और ध्यान दो!
हैरानी से ताको और दंग रह जाओ!
क्योंकि तुम्हारे दिनों में कुछ ऐसा होनेवाला हैकि अगर तुम्हें बताया भी जाए तब भी तुम यकीन नहीं करोगे।+
6 मैं तुम्हारे खिलाफ कसदियों को लानेवाला हूँ,+हाँ, उस बेरहम और उतावले राष्ट्र को।
वे लोग धरती के दूर-दूर के इलाकों से होकर जाते हैंऔर परायों की ज़मीन हथिया लेते हैं।+
7 वे बहुत भयानक और डरावने हैं,
वे अपने कानून खुद बनाते हैं और धौंस जमाते हैं।+
8 उनके घोड़े, चीते से भी तेज़ दौड़ते हैं।
वे लोग रात को निकलनेवाले भेड़ियों से ज़्यादा खूँखार हैं।+
उनके जंगी घोड़े धड़धड़ाते हुए आते हैं,उनके घोड़े दूर से आते हैं।
वे लोग उकाब की तरह अपने शिकार पर झपट पड़ते हैं।+
9 सब-के-सब खून के प्यासे हैं,+
वे एक-साथ ऐसे आते हैं जैसे पूरब से गरम हवा आती है+और वे बंदियों को रेत के किनकों की तरह उठा ले जाते हैं।
10 वे राजाओं का मज़ाक उड़ाते हैं,
बड़े-बड़े अधिकारियों पर हँसते हैं,+सब मज़बूत गढ़ों पर ठहाके मारते हैं+और मिट्टी का टीला बनाकर उन पर कब्ज़ा कर लेते हैं।
11 फिर वे तेज़ झोंके की तरह देश में से होकर जाते हैं।लेकिन उन्हें दोषी ठहराया जाएगा,+क्योंकि वे अपनी ताकत का श्रेय अपने देवता को देते हैं।”*+
12 हे यहोवा, तू हमेशा से वजूद में है,+हे मेरे परमेश्वर, मेरे पवित्र परमेश्वर, तू कभी नहीं मरता।*+
हे यहोवा, अपना फैसला सुनाने के लिए तूने उन्हें ठहराया है,हे मेरी चट्टान,+ हमें सज़ा देने* के लिए तूने उन्हें चुना है।+
13 तेरी आँखें इतनी शुद्ध हैं कि तू बुराई नहीं देख सकता,दुष्टता तुझसे बरदाश्त नहीं होती।+
तो फिर तू छल करनेवालों को क्यों बरदाश्त कर रहा है?+
जब दुष्ट किसी नेक जन को निगल जाता है, तो तू क्यों खामोश रहता है?+
14 तूने इंसान को समुंदर की मछलियों जैसा क्यों बना दिया है?समुंदर के जीव-जंतुओं जैसा क्यों बना दिया है, जिन पर कोई शासक नहीं होता?
15 वह* उन सबको मछली पकड़ने के काँटे से खींच लेता है,
बड़े जाल में उन्हें फँसा लेता है,मछली के जाल में इकट्ठा करके खूब खुश होता है।+
16 इसलिए वह अपने बड़े जाल के लिए बलिदान चढ़ाता है,मछली के जाल के आगे धूप जलाता है,क्योंकि इन्हीं से उसे चिकना-चिकना भोजन मिलता हैऔर वह बढ़िया-बढ़िया खाना खाता है।
17 क्या वह अपना बड़ा जाल यूँ ही भरता और खाली करता रहेगा?*
क्या वह तरस खाए बिना राष्ट्रों को मारता रहेगा?+
कई फुटनोट
^ शायद इसका मतलब है, “प्यार से गले लगाना।”
^ या शायद, “उनकी ताकत ही उनका देवता है।”
^ या शायद, “हम नहीं मरेंगे।”
^ या “सुधारने।”
^ यानी उनके दुश्मन, कसदी।
^ या शायद, “अपनी तलवार ताने रहेगा?”