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सच्चाई ‘शांति नहीं लाती बल्कि तलवार चलवाती है’

सच्चाई ‘शांति नहीं लाती बल्कि तलवार चलवाती है’

“यह मत सोचो कि मैं धरती पर शांति लाने आया हूँ, मैं शांति लाने नहीं बल्कि तलवार चलवाने आया हूँ।”​—मत्ती 10:34.

गीत: 43, 24

1, 2. (क) हम आज किस तरह की शांति का आनंद उठाते हैं? (ख) फिलहाल हम पूरी तरह से शांति पाने की उम्मीद क्यों नहीं करते? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

हममें से कोई नहीं चाहता कि हम चिंताओं से घिरे रहें बल्कि हम शांति और सुकून से जीना चाहते हैं। इसलिए हम कितने एहसानमंद हैं कि हमें ‘परमेश्वर की शांति’ मिली है। यह शांति ऐसी सोच और भावनाओं को हमारे मन में नहीं आने देती जो हमें परेशान कर सकती हैं। (फिलि. 4:6, 7) इसके अलावा, ‘परमेश्वर के साथ हमारा शांति का रिश्ता’ है क्योंकि हमने उसे अपना जीवन समर्पित किया है।​—रोमि. 5:1.

2 लेकिन फिलहाल हम यह उम्मीद नहीं करते कि धरती पर पूरी तरह से शांति हो। क्यों नहीं? क्योंकि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं और ऐसी कई समस्याएँ हैं जो हमारी शांति छीन सकती हैं। हम ऐसे लोगों से भी घिरे हैं जो खूँखार और झगड़ालू हैं। (2 तीमु. 3:1-4) यही नहीं, हमें शैतान और उसकी फैलायी झूठी शिक्षाओं के खिलाफ लड़ना पड़ता है। (2 कुरिं. 10:4, 5) लेकिन सबसे ज़्यादा दुख हमें तब होता है जब हमारे परिवार के अविश्वासी सदस्य हमारा विरोध करते हैं। कुछ शायद हमारे विश्वास का मज़ाक उड़ाएँ या हम पर यह दोष लगाए कि हमारी वजह से परिवार में फूट पड़ गयी है। वे शायद यह भी धमकी दें कि अगर हम अपना विश्वास नहीं छोड़ेंगे तो वे हमसे नाता तोड़ लेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि परिवार से विरोध का सामना करने पर हमें क्या बात समझनी चाहिए? इन हालात में हम अपनी शांति कैसे बनाए रख सकते हैं?

विरोध का सामना करने पर क्या बात समझना ज़रूरी है?

3, 4. (क) यीशु की शिक्षाओं का क्या असर होता है? (ख) खासकर किन हालात में यीशु के पीछे चलना आसान नहीं होता?

3 यीशु जानता था कि हर कोई उसकी शिक्षाओं को नहीं मानेगा। वह यह भी जानता था कि कुछ लोग उसके चेलों का विरोध करेंगे, इसलिए चेलों को हिम्मत की ज़रूरत होगी। इस तरह के विरोध से उनके परिवारों की शांति भंग हो सकती है। यीशु ने कहा था, “यह मत सोचो कि मैं धरती पर शांति लाने आया हूँ, मैं शांति लाने नहीं बल्कि तलवार चलवाने आया हूँ। मैं बेटे को पिता के, बेटी को माँ के और बहू को उसकी सास के खिलाफ करने आया हूँ। वाकई, एक आदमी के दुश्मन उसके अपने ही घराने के लोग होंगे।”​—मत्ती 10:34-36.

4 जब यीशु ने कहा, “यह मत सोचो कि मैं धरती पर शांति लाने आया हूँ” तो उसका क्या मतलब था? वह चाहता था कि लोग इस बात को समझें कि जो उसके चेले बनेंगे उन्हें कुछ मुश्किलों का सामना करना होगा। बेशक यीशु परिवारों में फूट पैदा नहीं करना चाहता था बल्कि वह लोगों को परमेश्वर के बारे में सच्चाई सिखाना चाहता था। (यूह. 18:37) मगर उसके चेलों को यह समझना था कि उसके पीछे चलना आसान नहीं होगा खासकर तब जब परिवार के लोग या करीबी दोस्त सच्चाई कबूल नहीं करते।

5. यीशु के चेलों के साथ क्या हुआ?

5 यीशु ने कहा था कि उसके चेले अपने परिवार से विरोध का सामना करेंगे और इसके लिए उन्हें तैयार रहना होगा। (मत्ती 10:38) दरअसल उसके कई चेलों के साथ ऐसा ही हुआ। उनके परिवारवालों ने उनका मज़ाक उड़ाया या फिर उनसे सारे नाते तोड़ दिए। लेकिन यीशु को खुश करने के लिए उन्होंने जो कुछ खोया, उससे कई गुना पाया।​मरकुस 10:29, 30 पढ़िए।

6. परिवार से विरोध आने पर हमें क्या याद रखना चाहिए?

6 अगर हमारे परिवारवाले हमारा विरोध करते हैं, तब भी हम उनसे प्यार करते हैं। मगर याद रखिए, हमें किसी भी इंसान से ज़्यादा परमेश्वर और मसीह से प्यार करना चाहिए। (मत्ती 10:37) यह भी याद रखिए कि अगर हम अपने परिवार से ज़्यादा प्यार करते हैं, तो शैतान इसका फायदा उठाकर हमें यहोवा से दूर ले जा सकता है। आइए देखें कि परिवार में कौन-से मुश्किल हालात उठ सकते हैं और हम इनका कैसे सामना कर सकते हैं।

अविश्वासी साथी

7. अगर एक मसीही का साथी अविश्वासी हो, तो उसे अपने हालात को किस नज़र से देखना चाहिए?

7 बाइबल हमें साफ बताती है कि जो शादी करते हैं उन्हें “दुख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी।” (1 कुरिं. 7:28) अगर आपका साथी यहोवा की उपासना नहीं करता, तो इससे शादीशुदा ज़िंदगी में तनाव और चिंताएँ और भी बढ़ सकती हैं। लेकिन अपने हालात को यहोवा की नज़र से देखिए। वह नहीं चाहता कि आप अपने साथी से सिर्फ इसलिए अलग हो जाएँ या तलाक ले लें क्योंकि वह यहोवा का एक सेवक नहीं। (1 कुरिं. 7:12-16) तो फिर पत्नियो, अगर आपका पति सच्चाई में नहीं है, तब भी उसका आदर कीजिए क्योंकि वह परिवार का मुखिया है। उसी तरह पतियो, अगर आपकी पत्नी यहोवा की उपासना नहीं करती, तब भी उससे प्यार कीजिए और उसके साथ कोमलता से पेश आइए।​—इफि. 5:22, 23, 28, 29.

8. अगर आपका साथी आप पर थोड़ी-बहुत रोक लगाता है, तो आप खुद से क्या पूछ सकते हैं?

8 अगर आपका साथी उपासना के मामले में आप पर थोड़ी-बहुत रोक लगाता है, तो आपको क्या करना चाहिए? एक बहन के पति ने उससे कहा कि वह हफ्ते में कुछ ही दिन प्रचार में जा सकती है। हो सकता है आपके हालात भी ऐसे हों। आप खुद से पूछ सकते हैं: ‘क्या मेरा साथी मुझे पूरी तरह से यहोवा की उपासना छोड़ने के लिए कह रहा है? अगर नहीं, तो क्या मैं उसकी बात मान सकती हूँ?’ अगर आप अपने साथी का लिहाज़ करेंगे तो आपकी शादीशुदा ज़िंदगी में समस्याएँ कम होंगी।​—फिलि. 4:5.

9. एक मसीही किस तरह बच्चों को अपने अविश्वासी साथी का आदर करना सिखा सकता है?

9 जिस घर में एक अविश्वासी साथी हो, वहाँ बच्चों को प्रशिक्षण देना मुश्किल हो सकता है। मिसाल के लिए, आप बच्चों को बाइबल की यह आज्ञा मानना सिखाते हैं: “अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना।” (इफि. 6:1-3) लेकिन तब क्या जब आपका साथी बाइबल के ऊँचे स्तरों को नहीं मानता? ऐसे में उसका आदर कीजिए और अपने बच्चों के लिए अच्छी मिसाल रखिए। अपने साथी के अच्छे गुणों पर ध्यान दीजिए और जब भी वह आपके लिए कोई अच्छा काम करता है, तो उसकी तारीफ कीजिए। बच्चों के सामने अपने साथी के बारे में कोई बुरी बात मत कहिए। बच्चों को समझाइए कि हरेक को खुद फैसला करना होता है कि वह यहोवा की सेवा करेगा या नहीं। जब आप बच्चों को अपने अविश्वासी साथी का आदर करना सिखाते हैं तो इसके अच्छे नतीजे हो सकते हैं। बच्चों की अच्छी मिसाल देखकर शायद आपका साथी सच्चाई में दिलचस्पी लेने लगे।

जब भी मौका मिलता है, अपने बच्चों को बाइबल के बारे में सिखाइए (पैराग्राफ 10 देखिए)

10. एक मसीही कैसे अपने बच्चों को यहोवा से प्यार करना सिखा सकता है?

10 कभी-कभी कुछ अविश्वासी साथी चाहते हैं कि उनके बच्चे तीज-त्योहार मनाएँ या झूठे धर्म की शिक्षाएँ मानें। कुछ पति शायद अपनी मसीही पत्नी से साफ-साफ कहें कि वह बच्चों को बाइबल के बारे में न सिखाए। लेकिन इन हालात में भी पत्नी बच्चों को सच्चाई सिखाने की पूरी कोशिश करेगी। (प्रेषि. 16:1; 2 तीमु. 3:14, 15) मिसाल के लिए, एक पत्नी शायद बच्चों के साथ बैठकर बाइबल अध्ययन न कर पाए या उन्हें सभाओं में न ले जा पाए, क्योंकि उसके पति ने ऐसा करने से मना किया है। भले ही वह अपने पति के फैसले का आदर करेगी, लेकिन जब भी मुमकिन हो वह अपने बच्चों को अपने विश्वास के बारे में बताएगी। इस तरह बच्चे यहोवा और उसके नैतिक स्तरों के बारे में सीख पाएँगे। (प्रेषि. 4:19, 20) लेकिन आखिर में बच्चों को खुद फैसला करना होगा कि वे यहोवा की सेवा करना चाहते हैं या नहीं। *​—व्यव. 30:19, 20.

जब रिश्तेदार सच्ची उपासना के खिलाफ हों

11. किस वजह से आपके घरवाले और रिश्तेदार आपसे नाराज़ हो सकते हैं?

11 जब आपने साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करना शुरू किया तो शायद आपने इस बारे में अपने परिवार को कुछ न बताया हो। लेकिन जैसे-जैसे आपका विश्वास बढ़ा, आपको एहसास हुआ कि आपको अपने घरवालों को खुलकर बताना चाहिए कि अब आप यहोवा की सेवा करते हैं। (मर. 8:38) यह सुनकर शायद घरवाले और रिश्तेदार नाराज़ हो जाएँ। ऐसे में आप उनके साथ कैसे शांति बनाए रख सकते हैं और यहोवा के वफादार बने रह सकते हैं? आइए कुछ बातों पर ध्यान दें।

12. हमारे रिश्तेदार शायद क्यों हमारा विरोध करें? ऐसे में हम क्या कर सकते हैं?

12 अविश्वासी रिश्तेदारों की भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिए। हम बहुत खुश हैं कि हमने बाइबल से सच्चाई सीखी है। लेकिन हमारे रिश्तेदारों को शायद लगे कि हमें बहकाया गया है या हम किसी अजीबो-गरीब धर्म को मानने लगे हैं। वे शायद सोचें कि अब हम उनसे प्यार नहीं करते क्योंकि हम उनके साथ कोई भी त्योहार नहीं मनाते। उन्हें शायद यह डर भी सताए कि हमारे मरने के बाद हमारे साथ कुछ बुरा होगा। हमें उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए और ध्यान से उनकी बातें सुननी चाहिए ताकि हम यह जान सकें कि उन्हें क्या चिंता सता रही है। (नीति. 20:5) प्रेषित पौलुस ने “सब किस्म के लोगों” को समझने की कोशिश की ताकि उन्हें खुशखबरी सुना सके। अगर हम अपने परिवारवालों को समझने की कोशिश करें तो इससे हमें उन्हें सच्चाई सिखाने में मदद मिलेगी।​—1 कुरिं. 9:19-23.

13. हमें अपने अविश्वासी रिश्तेदारों से किस तरह बात करनी चाहिए?

13 नरमी से बात कीजिए। बाइबल बढ़ावा देती है, ‘तुम्हारे बोल हमेशा मन को भानेवाले हों।’ (कुलु. 4:6) शायद ऐसा करना आसान न हों। हम यहोवा से उसकी पवित्र शक्‍ति माँग सकते हैं ताकि हम अपने रिश्तेदारों के साथ कोमलता और प्यार से पेश आ सकें। हमें हर झूठी शिक्षा को लेकर उनसे बहस नहीं करनी चाहिए। अगर हमें उनकी किसी बात या काम से ठेस पहुँचती है, तो हमें प्रेषितों की मिसाल पर चलना चाहिए। पौलुस ने कहा, “जब हमारा अपमान किया जाता है तो हम आशीष देते हैं। जब हमें सताया जाता है तो हम धीरज धरते हुए सह लेते हैं। जब हमें बदनाम किया जाता है तो हम कोमलता से जवाब देते हैं।”​—1 कुरिं. 4:12, 13.

14. अच्छा चालचलन बनाए रखने के क्या फायदे होते हैं?

14 अच्छा चालचलन बनाए रखिए। यह क्यों ज़रूरी है? नरमी से बात करने से हम अपने रिश्तेदारों के साथ शांति बनाए रख पाते हैं लेकिन हमारे अच्छे चालचलन का उन पर और भी ज़बरदस्त असर हो सकता है। (1 पतरस 3:1, 2, 16 पढ़िए।) हमारी मिसाल देखकर हमारे रिश्तेदारों को एहसास होगा कि यहोवा के साक्षियों का परिवार सुखी रहता है, वे अपने बच्चों की अच्छी देखभाल करते हैं, बाइबल के ऊँचे स्तरों पर चलते हैं और मकसद-भरी ज़िंदगी जीते हैं। चाहे हमारे रिश्तेदार सच्चाई कबूल करें या न करें, हमारा बढ़िया चालचलन देखकर यहोवा खुश होता है।

15. हम बहस करने से दूर कैसे रह सकते हैं?

15 पहले से तय कीजिए कि आप क्या करेंगे। ऐसे कौन-से हालात हैं जब रिश्तेदारों के साथ आपकी बहस छिड़ सकती है? इस बारे में पहले से सोचिए कि आप क्या करेंगे। (नीति. 12:16, 23) ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाली एक बहन ने यही किया। उसके ससुर सच्चाई का कड़ा विरोध करते हैं और कभी-कभी गुस्से से भड़क जाते हैं। इसलिए उन्हें फोन करने से पहले, बहन और उसका पति यहोवा से प्रार्थना करते हैं ताकि गुस्सा आने पर भी वे नरमी से जवाब दे सकें। यही नहीं, वे ऐसे विषय सोचकर रखते हैं जिन पर बात करने से कोई तकरार न हों। वे यह भी जानते हैं कि अगर वे ज़्यादा लंबी बातचीत करेंगे तो धर्म की बात उठ सकती है और उनके बीच बहस छिड़ सकती है। इसलिए वे पहले से तय करते हैं कि कितनी देर बात करेंगे।

16. जब आपके रिश्तेदार आपसे नाराज़ हो जाते हैं, तो आप क्या कर सकते हैं?

16 आपकी कोशिशों के बावजूद कभी-न-कभी अविश्वासी रिश्तेदारों से आपकी बहस हो सकती है। जब ऐसा होता है, तो आपको शायद बुरा लगे क्योंकि आप अपने रिश्तेदारों से प्यार करते हैं और उन्हें खुश करना चाहते हैं। मगर याद रखिए कि आपको अपने परिवार से ज़्यादा यहोवा से प्यार करना है और उसके वफादार रहना है। शायद यह देखकर आपके रिश्तेदार समझ जाएँ कि आपकी ज़िंदगी में यहोवा कितनी अहमियत रखता है। यह सच है कि सच्चाई अपनाने के लिए आप दूसरों के साथ ज़बरदस्ती नहीं कर सकते। लेकिन आप उन्हें समझा सकते हैं कि सच्चाई से आपको कितना फायदा हुआ है! देखा जाए तो यहोवा उन्हें भी वही मौका दे रहा है जो उसने आपको दिया था यानी वे यहोवा के सेवक बन सकते हैं।​—यशा. 48:17, 18.

जब परिवार का कोई सदस्य यहोवा को छोड़ दे

17, 18. अगर परिवार का कोई सदस्य यहोवा को छोड़ देता है, तो आप इस दर्द को कैसे सह सकते हैं?

17 जब परिवार के किसी सदस्य का बहिष्कार होता है या वह मंडली के साथ संगति करना छोड़ देता है, तो यह बहुत ही दर्दनाक अनुभव हो सकता है। आपको शायद लगे कि तलवार से कोई आपको बार-बार चोट पहुँचा रहा हो। आप इस दर्द को कैसे सह सकते हैं?

18 यहोवा की सेवा पर अपना ध्यान लगाए रखिए। अपने विश्वास को मज़बूत करने के लिए रोज़ बाइबल पढ़िए, सभाओं की अच्छी तैयारी कीजिए और हर सभा में जाइए। प्रचार करते रहिए। सबसे बढ़कर यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह आपको सहने की ताकत दे। (यहू. 20, 21) लेकिन यह सब करने के बाद भी अगर आपका दर्द कम नहीं होता, तब क्या? हिम्मत मत हारिए! यहोवा की सेवा पर अपना ध्यान लगाए रखिए। समय के चलते आप अपने विचारों और भावनाओं पर काबू कर पाएँगे। भजन 73 के लिखनेवाले के साथ यही हुआ था। उसकी ज़िंदगी में एक ऐसा मुकाम आया था जब उसकी सोच और भावनाएँ उसे निराश कर रही थीं। लेकिन यहोवा की उपासना करने से वह अपनी सोच ठीक कर पाया। (भज. 73:16, 17) अगर आप यहोवा की सेवा में लगे रहें तो आप भी ऐसा ही कर पाएँगे।

19. सुधारने का जो इंतज़ाम यहोवा ने ठहराया है, हम उसका आदर कैसे कर सकते हैं?

19 सुधारने का जो इंतज़ाम यहोवा ने ठहराया है, उसे कबूल कीजिए। यहोवा जानता है कि इस इंतज़ाम से सबको फायदा होता है, उसे भी जिसका मंडली से बहिष्कार किया गया है। माना कि जब हमारे किसी अज़ीज़ को सुधारा जाता है तो हमें बहुत तकलीफ होती है। मगर यही बात उसकी मदद करेगी कि वह आगे चलकर यहोवा के पास लौट आए। (इब्रानियों 12:11 पढ़िए।) लेकिन तब तक हमें यहोवा के इस निर्देश को मानना चाहिए कि बहिष्कार किए गए व्यक्‍ति से “मेल-जोल रखना बंद” कर दो। (1 कुरिं. 5:11-13) ऐसा करना आसान नहीं। लेकिन यह ज़रूरी है कि हम फोन, मैसेज, खत, ई-मेल या किसी और सोशल मीडिया के ज़रिए उससे संपर्क न रखें।

20. हमें क्या उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए?

20 उम्मीद मत छोड़िए। प्यार “सब बातों की आशा रखता है।” (1 कुरिं. 13:7) इसलिए हम यह उम्मीद नहीं छोड़ते कि एक-न-एक दिन हमारा अज़ीज़ यहोवा के पास लौट आएगा। अगर आप देखते हैं कि उसके रवैए में बदलाव आ रहा है तो आप उसके लिए प्रार्थना कर सकते हैं। आप यहोवा से बिनती कर सकते हैं कि उसे बाइबल से हौसला मिले और वह यहोवा के इस न्यौते को कबूल करे, “मेरे पास लौट आ।”​—यशा. 44:22.

21. अगर आपका परिवार आपका विरोध करता है, तो आपको क्या करना चाहिए?

21 यीशु ने कहा था कि हमें किसी भी इंसान से ज़्यादा उससे प्यार करना चाहिए। उसे पूरा यकीन था कि परिवार के विरोध के बावजूद उसके चेले हिम्मत रखेंगे और उसके वफादार रहेंगे। इसलिए यीशु के चेले होने की वजह से अगर आपका विरोध किया जाता है, तो यहोवा पर भरोसा रखिए। उससे प्रार्थना कीजिए ताकि आप ऐसे हालात में धीरज धर सकें। (यशा. 41:10, 13) यकीन रखिए कि आपकी वफादारी देखकर यहोवा और यीशु बहुत खुश हैं और वे आपको इसका इनाम देंगे।

^ पैरा. 10 जब माता-पिता में से एक ही यहोवा का साक्षी है, तो बच्चों को कैसे प्रशिक्षण दें, इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए 15 अगस्त, 2002 की प्रहरीदुर्ग में “पाठकों के प्रश्न” देखिए।